Home news आढ़तियों के ठाठ-बाट, किसान-मजदूरों की हालत खस्ता,गरीब किसानों के साथ भेदभाव

आढ़तियों के ठाठ-बाट, किसान-मजदूरों की हालत खस्ता,गरीब किसानों के साथ भेदभाव

नए कृषि कानूनों (New Agriculture Laws) के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन 4 महीने से ज्यादा समय से चल रहा है आप को बता दे की तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली के चारों बॉर्डर (टीकरी, शाहजहांपर, सिंघु और गाजीपुर) पर चल रहा किसानों का आंदोलन अब अंतिम सांसें गिन रहा है। लाखों की भीड़ पहले हजारों हुई और अब तो सभी बॉर्डर पर किसानों की संख्या सैकड़ों में आ गई है इस बीच तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर चल रहे आंदोलन को अब साढ़े चार माह पूरे होने को हैं, लेकिन आंदोलन में अब वह रंगत और नूर नहीं, जो शुरुआत में थी..

आंदोलन में गरीब किसानों के साथ भेदभाव ?

गर्मी की शुरुआत के साथ ही एक तरफ किसान आंदोलन का स्वरूप बदल रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ इसमें छोटे और बड़े आंदोलनकारियों का फर्क भी साफ देखा जा सकता है। टीकरी बॉर्डर पर कोई तो बांस-बल्ली से बनाए तंबुओं में ठहरा है तो बहुत से आंदोलनकारी ऐसे भी हैं, जो पंजाब से कमरानुमा ट्रॉली लेकर आ रहे हैं। उसमें एसी भी फिट किया गया है। यह एक तरह से छोटे और बडे़ आंदोलनकारियों का ही फर्क दिखाता है। आंदोलन स्थल पर कहीं से भी बिजली का तार जोड़ने के बाद यह ट्राली लग्जरी कमरा ही बन जाती है। फिलहाल तापमान बढ़ने के चलते ट्रालियों के एसी दिन ही नहीं, रात में भी चल रहे हैं। आंदोलन में इस तरह की एसी वाली ट्रॉली जगह-जगह देखी जा सकती है। इनमें से अधिकतर ट्रॉलियां पंजाब से आए आंदोलनकारियों की हैं।बता दें कि गर्मी की शुरुआत होते ही टीकरी, सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर धरना दे रहे किसान प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ाने के लिए पंखे और कूलर भी लगाए गए हैं… आप को बता दे की साढ़े चार महीने से जारी प्रदर्शन में किसान रोज धरने पर आकर बैठते हैं और भोजन कर वापस लौट जाते हैं। यहां पर आधे से ज्यादा वक्ता तो ऐसे होते हैं जिनको धरने पर बैठे लोग जानते भी नहीं हैं…

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