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फिर गरमाई बुर्के की राजनीति

देश के प्रमुख राजीतिक दल शिवसेना ने सार्वजनिक स्थानों पर बुर्के को बैन करने की मांग की है।
इस विषय पर एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने शिवसेना की मांग की आलोचना करते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे की नेतृत्व वाली पार्टी को यह पता होना चाहिए कि भारतीय संविधान के अनुसार सबको अपनी पसंद की चीजें चुनने का अधिकार है। उन्होंने कहा, ‘शिवसेना के अनजान लोगों को मैं बताना चाहूंगा कि देश में पसंद एक मूलभूत अधिकार है।’
जब किसी भी धर्म या पंथ या उनसे सम्बन्धित प्रतीक चिन्हों की बात आती है तो कई सवाल खड़े हो जाते है जैसे –
क्या बुर्का भय का प्रतीक बनने लगा है ?
क्या बुर्के का हवाला देते हुए किसी एक निश्चित समुदाय पर निशाना साधा जा रहा है?
ऐसे कई प्रश्न है जिनके उत्तर देने में राजनीतिक पार्टियों को जितनी परेशानियां होती है उतनी ही आसानी से उनके ऐसे प्रश्न खड़े हो जाते है ।
कहां-कहां बुर्के पर प्रतिबन्धित है और क्यों ?
श्रीलंका में ईस्टर के दिन हुए आत्मघाती हमलों में 250 से अधिक लोगों की मौत के बाद सरकार ने आपात कदम उठाते हुए सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढ़कने पर प्रतिबंध लगा दिया है। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के कार्यालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए किसी भी तरह का कपड़ा जिससे चेहरा या पहचान छुपाई जा सके, प्रतिबंधित है।
फ्रांस में 2011 में सार्वजनिक स्थानों पर बुर्के को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था। वो ऐसा करने वाला पहला यूरोपीय देश था।
2018 में जब डेनमार्क में भी बुर्के और नकाब पर प्रतीबंध लगाया है , कानून के मुताबिक, सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढंकने के लिए किसी भी तरह का कपड़ा पहनने पर 1000 क्रोन यानी लगभग 157 डॉलर के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। बार-बार कानून तोड़ने वालों के लिए जुर्माना अधिक है।
चीन के शीनजियां क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र में बुर्का के साथ लम्बी दाड़ी रफना भी बैन किया गया है।
इनके अलावा नीदरलैंड्स,जर्मनी,बेल्जियम,नॉर्वे ,बुल्गारिया,इटली,स्पेन आदि ऐसे कई जगह हैं जहां फेस ढकने की मनाही है ।
विविधता मे एकता की झलक दिखलाने वाले इस देश में आज लोगों के मन मे एक दूसरे के प्रति विविधता उत्पन्न हो रही है।
भारत में इस समय बेरोजगारी ,गरीबी , असमानता जैसे कई समस्याओं को दरकिनार करते हुए, क्या पहने क्या खाये इस पर बहस अभी चल रही है।

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