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दहकता रहेगा राफेल

भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल विमान सौदे को लेकर उच्चतम न्यायलय द्वारा सभी याचिकाएं खारिज करने के बाद यह सोचना ठीक नहीं होगा कि यह मुद्दा अब शांत हो जाएगा। दरअसल, देश के शीर्षस्थ न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने सारी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि राफेल सौदे में कोई संदेह नहीं है।

राफेल की गुणवत्ता को लेकर कोई सवाल नहीं है। हमने सौदे की पूरी प्रक्रिया पढ़ी है। विमान देश की जरूरत हैं। विमान की कीमत देखना हमारा काम नहीं है। हम सरकार को आदेश नहीं दे सकते हैं कि वह कितने विमान खरीदेगी। राफेल मामले में सबसे पहले उच्चतम न्यायलय के अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने याचिका दाखिल की थी।

बाद में, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और फिर 24 अक्टूबर को अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ संयुक्त रूप से प्रशांत भूषण ने इसी मसले पर याचिका दाखिल की थी। इन सभी याचिकाओं को अदालत ने खारिज कर दिया है। इस निर्णय के बावजूद कांग्रेस बैकफुट पर नहीं आई है।

हालांकि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने राफेल पर सरकार को घेरने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से इस संबंध में तीन सवाल करते हुए देश और सेना से माफी मांगने को कहा है। उन्होंने  पूछा है कि वह अपने सूचना का आधार (सोर्स ऑफ इन्फॉर्मेशन) बताएं। उन्होंने अपने दूसरे सवाल में राफेल सौदे में देरी का कारण पूछा है तो तीसरे प्रश्न में पूछा है कि 2007 से 2014 तक यह सौदा अंतिम रूप क्यों नहीं ले सका?

फैसले पर टिप्पणी करते हुए प्रख्यात अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपने वक्तव्य में उच्चतम न्यायलय के इस निर्णय से असहमति जताई है। न्यायालय ने कहा है कि साक्ष्य के आधार पर राफेल सौदे को लेकर किसी तरह की जांच की कोई जरूरत नहीं है। शीर्षस्थ न्यायलय ने सौदे से जुड़ी प्रक्रिया और कीमतों पर संतुष्टि जताई है, लेकिन प्रशांत भूषण ने इस  निर्णय को पूरी तरह से गलत बताते हुए कहा है कि अदालत ने उनके तर्कों पर ध्यान नहीं दिया।

याचिकाकर्ताओं के पास जहां पुनर्विचार याचिका दायर करने का विकल्प अभी खुला हुआ है, वहीं, कांग्रेस ने विमानों के मूल्य को फिर से मुद्दा बनाने की कोशिश की है. कांग्रेस का कहना है कि हम कभी उच्चतम न्यायलय नहीं गए। हम संयुक्त संसदीय समिति (जेपीएसी) की मांग शुरू से कर रहे हैं।

संसद में कांग्रेस, टीएमसी समेत पूरा विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़ा हुआ है यही नहीं, इस फैसले पर विश्लेषकों की राय है कि न्यायलय ने अपने संवैधानिक दायरे में रहते हुए ही निर्णय दिया है। वह मामले की तह तक नहीं गया। उसने आधार मूल्य (बेंचमार्क प्राइज) के मुद्दे पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।

गत 15 नवंबर को कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया था, ”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफसरों, रक्षा मंत्री और रक्षा खरीद परिषद की राय के खिलाफ जाकर लड़ाकू विमानों के आधार मूल्य को 39,422 करोड़ से बढ़ाकर 62,166 करोड़ रुपये कर दिया. भारतीय जनता पार्टी  बेंचमार्क प्राइज को बढ़ाकर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचा रही है.” इस दौरान सुरजेवाला ने जीपीसी की मांग की थी। इस बीच, केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को एक अर्जी लगाकर सरकार व्दारा प्रस्तुत दस्तावेजों में संशोधन की प्रार्थना की है। इसके बाद कांग्रेस को यह कहने का मौका मिल गया कि उच्चतम न्यायालय गलत दस्तावेजों के आधार पर दिए अपने फैसले को वापस ले।  इस प्रकार, यह कहना गलत नहीं होगा कि यह मामला कम से कम अगले आम चुनाव तक दहकता रहेगा

अनिल गुप्ता

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