“मैने इश्क कहा, और तुमने बनारस समझा”

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मैने इश्क कहा, और तुमने बनारस समझा

मैने इश्क कहा और तुमने बनारस समझा – उत्तरप्रदेश की बात आये और आप बनारस को भूल जाये ऐसा कभी हो सकता है क्या ।बनारस इसके नाम में ही एक अलग सुकून भरा हुआ है।बनारस अपने घाटों और मंदिरो के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है।। इसे ‘बनारस‘ और ‘काशी ‘ भी कहते हैं। इसे  एक पवित्र हिन्दूधर्म  नगर माना गया है।  इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी यह एक महत्वपूर्ण शहर है।
यह संसार के प्राचीन बसे शहरों में से एक है।

वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं।
गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था
और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था।

बनारस के बारे में

आमतौर पर वाराणसी को घाटों और मंदिरों का शहर कहा जाता है। इस शहर को कई अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है वाराणसी, काशी, और बनारस। वाराणसी शहर में कुल 88 घाट हैं जो सभी गंगा नदी के किनारे स्थित है। इनमें से अधिकांश घाटों का इस्तेमाल स्नान और पूजा समारोह के लिए किया जाता है। जबकि दो घाटों को विशेष रूप से श्मशान स्थलों के रूप में उपयोग किया जाता है। वैसे तो वाराणसी में छोटे बड़े लगभग 88 घाट है। जहाँ हर दिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक गंगा नदी में डुबकी लगाने, घूमने और नाव की सवारी के लिए आते है ।

बनारस की बात आये और बनारसी पान को भूल जाये ऐसा तो ना कभी हुआ है ना ही होगा।

बनारसी पान दुनिया भर में मशहूर है। बनारसी पान चबाना नहीं पड़ता।
यह मुँह में जाकर धीरे-धीरे घुलता है और मन को भी सुवासित कर देता है।
वाराणसी आने वालों में पान खाने का शौक़ रखने वाले को बनारसी पान ज़रुर खाना चाहिए।
हिन्दी की सुपरहिट फ़िल्म डॉन का गाना खई के पान बनारस वाला जो अमिताभ बच्चन पर चित्रांकित किया गया था, बनारसी पान की प्रशंसा में गाया गया था
और बहुत लोकप्रिय भी हुआ था।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। बीएचयू (बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी) कहा जाता है।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् 1916 में बसंत पंचमी के दिवस पर की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार इस विश्वविद्यालय की स्थापना में मदन मोहन मालवीय जी का योगदान केवल सामान्य संस्थापक सदस्य के रूप में था, दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था दान देकर की। इस विश्वविद्यालय के मूल में डॉ॰ एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका भी है ।

वाराणसी का पुराना शहर, गंगा तीरे का लगभग चौथाई भाग है,
जो भीड़-भाड़ वाली संकरी गलियों और किनारे सटी हुई छोटी-बड़ी असंख्य दुकानों व सैंकड़ों हिन्दू मंदिरों से पटा हुआ है।
ये घुमाव और मोड़ों से भरी गलियां किसी के के भी मन को भा जाती हैं।
यहाँ की संस्कृति विदेशी पर्यटकों के लिये वर्षों से लोकप्रिय बना हुआ है।
आज बनारसी तबला घराना अपने शक्तिशाली रूप के लिये प्रसिद्ध है,
हालांकि बनारस घराने के वादक हल्के और कोमल स्वरों के वादन में भी सक्षम है।

बनारस का खाने ,बनारसी साड़ी की बात करे या यहाँ की संस्कृति आप को एक ही शहर में सब कुछ मिल जाता है  वो कहते है न अपना हाल अपना मिज़ाज़ सब भूल जाते है इ बनारस है जनाब यहाँ सब ठाठ में ही बतियाते है।