Places Of Worship Act, 1991: काशी-मथुरा में फिर छिड़ी पूजा के अधिकार पर जंग

5

काशी-मथुरा में फिर छिड़ी

काशी-मथुरा में फिर छिड़ी पूजा के अधिकार पर जंग- नरसिंहा राव सरकार को डर था कि अयोध्या के बाद काशी, मथुरा ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग इलाकों में सैकड़ों मस्जिदों एवं अन्य इस्लामिक ढांचों पर ऐसा ही दावा किया जाएगा और उन्हें वापस हिंदुओं को सौंपने की मांग की जाएगी।
दरअसल, 90 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही इदगाह के खिलाफ आंदोलन को तेज कर दिया था।

वीएचपी ने दावा किया था
कि ये मस्जिदें हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं,
इसलिए इन्हें देश के हिन्दू समुदाय को वापस से सौंप देना चाहिए।
आंदोलन जब जोर पकड़ने लगा
तब देश की तत्कालीन नरसिंम्हा राव सरकार जनभावनाओं के दबाव में आ गई
और उसने प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट यानी पूजा स्थल कानून बनाया।
कानून लाने का मकसद अयोध्या रामजन्मभूमि आंदोलन को बढ़ती तीव्रता और उग्रता को शांत करना था।

काशी-मथुरा में फिर छिड़ी पूजा के अधिकार पर जंग

काशी और मथुरा में पूजा के अधिकार की हिंदू संगठनों की एक याचिका ने 20 साल पहले बने एक कानून और तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव को फिर चर्चा में ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में नरसिंहा राव सरकार की ओर से लाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट (पूजा स्थल कानून) को चुनौती देनेवाली याचिका की वैधता परखने की मांग मंजूर कर ली है।

 

देश के सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में भारत सरकार को नोटिस भेजकर उसका पक्ष मांगा है।
बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में कहा है
कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को खत्म किए जाने की मांग की है
ताकि इतिहास की गलतियों को सुधारा जाए और अतीत में इस्लामी शासकों द्वारा अन्य धर्मों के जिन-जिन पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों का विध्वंस करके उन पर इस्लामिक ढांचे बना दिए गए,
उन्हें वापस उन धर्मावलंबियों को सौंपे जा सकें जो उनका असली हकदार हैं।

 

लेकिन, नरसिंहा राव सरकार को डर था कि अयोध्या के बाद काशी, मथुरा ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग इलाकों में सैकड़ों मस्जिदों एवं अन्य इस्लामिक ढांचों पर ऐसा ही दावा किया जाएगा और उन्हें वापस हिंदुओं को सौंपने की मांग की जाएगी। इसी आशंका में सरकार ने कानून में यह प्रावधान कर दिया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद के सिवा देश की किसी भी अन्य जगह पर किसी भी पूजा स्थल पर दूसरे धर्म के लोगों के दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसमें कहा गया कि देश की आजादी के दिन यानी 15 अगस्त, 1947 को कोई धार्मिक ढांचा या पूजा स्थल जहां, जिस रूप में भी था,
उन पर दूसरे धर्म के लोग दावा नहीं कर पाएंगे।

 

नरसिंह राव सरकार ने इस एक कानून से बड़े धार्मिक विवाद का तत्कालीन मुद्दा रामजन्भूमि आंदोलन और भविष्य की आशंकाओं, दोनों का हल निकालने की कोशिश की थी। लेकिन, अब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की वैधता का आकलन करने की गुहार स्वीकार कर ली है। दरअसल, एक ऐसी याचिका पुजारियों के एक संगठन ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिए दायर कर रखी है। जनहित याचिका में भी सुप्रीम कोर्ट से 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को खत्म करने की मांग की गई है।
ताकि मथुरा में कृष्ण की जन्मस्थली और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर-मस्जिद के विवाद का भी निपटारा हो सके।

 

हालांकि, मुस्लिम संगठन जमायत उलमा-ए-हिंद ने इस याचिका का जबर्दस्त विरोधी किया है।
उसने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह याचिका इतिहास की गलतियों को सुधारने की छलपूर्ण कोशिश है।
उसने चेतावनी भी दी कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसमें दिलचस्पी ली
तो देश में मुकदमों और याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी।

काशी-मथुरा में फिर छिड़ी सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या रामजन्भूमि विवाद पर 1,045 पन्ने के
अपने फैसले में 1991 के इस कानून का हवाला देते हुए कहा था
कि यह कानून 15 अगस्त 1947 को सार्वजनिक पूजा स्थलों के रहे धार्मिक चरित्र को बरकरार रखने
और उनमें बदलाव के खिलाफ गारंटी देता है।
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि भारत में मुस्लिम शासन 1192 में स्थापित हुआ जब मुहम्मद गोरी ने

 

पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया था। तब से 1947 तक भारत पर विदेसी शासन ही रहा। इसलिए अगर धार्मिक स्थलों के चरित्र को बरकरार रखने का कोई कट ऑफ डेट तय करना है तो वह 1192 होना चाहिए जिसके बाद हजारों मंदिरों और हिंदुओं, बौद्धों एवं जैनों के तीर्थस्थलों का विध्वंस होता रहा
और मुस्लिम शासकों ने उन्हें नुकसान पहुंचाया या उनका विध्वंस कर उन्हें मस्जिदों में तब्दील कर दिया।
उपाध्या ने कानून की धारा 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई
और उसे गैर-संवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है।

 

याचिका में कहा गया है
कि उक्त प्रा‌वधान संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 एवं 29 का उल्लंघन करता है।
संविधान के समानता का अधिकार, जीवन का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 दखल देता है।
याचिका कहती है
कि किसी को भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट का दरवाजा बंद नहीं किया जा सकता
क्योंकि वह सबका संवैधानिक अधिकार है।