उत्तराखंड में रोजगार का नया जरिया बर्ड टूरिज्म, 60 जगहों में होती है बर्ड वाचिंग

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उत्तराखंड में अब बेजोड़ पक्षी विविधता वाले बर्ड टूरिज्म रोजगार का नया जरिया बनेगा। राज्य में बर्ड टूरिज्म की अपार संभावनाओं को देखते हुए सरकार ने अब इसे बढ़ावा देने का निश्चय किया है। इस सिलसिले में वन विभाग के साथ ही उत्तराखंड ईको टूरिज्म बोर्ड को नए सिरे से रणनीति तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। कोशिशें परवान चढ़ी तो आने वाले दिनों में 71.05 फीसद वन भूभाग वाले इस राज्य में वन्यजीव पर्यटन की भांति पक्षी पर्यटन से भी न सिर्फ झोलियां भरेंगी, बल्कि स्थानीय निवासियों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित होंगे।

विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड की जलवायु भी विविधता से भरी है। पहाड़, नदी, घाटी, मैदान सभी कुछ यहां पर है। यही कारण भी है कि परिंदों को यहां की जलवायु खूब रास आती है। आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। देशभर में पाई जाने वाली पक्षियों की 1300 में से करीब सात सौ प्रजातियां यहां चिह्नित की गई हैं। यही नहीं, विदेशों से मेहमान परिंदे भी यहां खूब आते हैं। यहां की पक्षी विविधता का दीदार करने के लिए हर साल ही काफी संख्या में पक्षी प्रेमी पहुंचते हैं, मगर यह मुहिम चुनिंदा स्थलों तक ही सिमटी हुई है।

कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व, आसन, झिलमिल, नैनादेवी व पवलगढ़ कंजर्वेशन रिजर्व, गंगोत्री नेशनल पार्क, लैंसडौन, देहरादून, चकराता, मसूरी, कालागढ़ समेत अन्य वन प्रभागों के करीब 60 स्थलों में ही बर्ड वाचिंग हो रही है, जबकि समूचा उत्तराखंड इस लिहाज से धनी है। फिर बर्ड वाचिंग के लिए किसी बड़े तामझाम की जरूरत नहीं है। प्रकृति को बगैर कोई नुकसान पहुंचाए, बर्ड वाचिंग हो सकती है। बर्ड वाचिंग के लिए सैलानियों की आमद बढऩे से जहां प्रदेश को राजस्व मिलेगा, वहीं स्थानीय स्तर पर गाइड, होम स्टे आदि के रूप में रोजगार के अवसर सृजित होंगे। साथ ही लोग पक्षी संरक्षण को भी प्रेरित होंगे।