दहेज प्रताड़ना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कानून में किया बदलाव, आरोपी पति की हो सकती है तुरंत गिरफ्तारी

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देश में दहेज उत्पीड़न को लेकर हर रोज एक नये मामले आते रहते हैं….जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट दहेज उत्पीड़न के खिलाफ कठोर से कठोर कानून बना रही है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के अपने फैसले में बड़ा बदलाव करते हुए पति की गिरफ्तारी का रास्ता भी साफ कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि शिकायत मिलने पर परिवार कल्याण कमेटी में मामले को लेकर कोई दखलअंदाजी नहीं होगी। जिसके खिलाफ शिकायत होंगी, उनकी तुरंत गिरफ्तारी होगी। बता दें कि इसके पहले तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बदलाव किया है। हालांकि कोर्ट ने आरोपियों के लिए अग्रीम जमानत का विकल्प खुला रखा है।

दहेज प्रताड़ना मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने पिछले साल दिए अपने फैसले में कहा था कि दहेज प्रताड़ना के केस में सीधे गिरफ्तारी नहीं होगी लेकिन इस फैसले के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था कि दहेज प्रताड़ना मामले में दिए फैसले में जो सेफगार्ड दिया गया है उससे वह सहमत नहीं हैं। दो जजों की बेंच के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने दोबारा विचार करने का फैसला किया था और सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पिछले साल दो जजों की बेंच ने बनाया था ये कानून

27 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने कहा था कि आईपीसी की धारा-498 ए यानी दहेज प्रताड़ना मामले में गिरफ्तारी सीधे नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दहेज प्रताड़ना मामले को देखने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए उससे पहले नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना मामले में कानून के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की और लीगल सर्विस अथॉरिटी से कहा है कि वह प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति का गठन करे। इसमें सिविल सोसायटी के लोग भी शामिल हों।

पहले इस तरह के मामले का दिया हवाला

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने कहा था कि राजेश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यूपी के केस में गाइडलाइंस जारी किए थे और इसके तहत दहेज प्रताड़ना के केस में गिरफ्तारी से सेफगार्ड दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि SC ने पहले अरनेश कुमार बनाम बिहार स्टेट के मामले में व्यवस्था दी थी कि बिना किसी ठोस कारण के गिरफ्तारी न हो यानी गिरफ्तारी के लिए सेफगार्ड दिए थे।

लॉ कमिशन ने भी कहा था कि मामले को समझौतावादी बनाया जाए। निर्दोष लोगों के मानवाधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अनचाही गिरफ्तारी और असंवेदनशील छानबीन के लिए सेफगार्ड की जरूरत बताई गई क्योंकि ये समस्याएं बदस्तूर जारी है।

दो जजों के बेंच ये के ये गाइडलाइंस पढ़ें

– ऐसे मामले में न्याय प्रशासन को सिविल सोसायटी का सहयोग लेना चाहिए।

– देशभर के तमाम जिले में परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और ये समिति जिला लीगल सर्विस अथॉरिटी बनाए।

– समिति में लीगल स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता, रिटायर शख्स होंगे।

– जो भी केस पुलिस या मैजिस्ट्रेट के सामने आएगा, वह समिति को भेजा जाएगा।

– एक महीने में समिति अपनी रिपोर्ट देगी और उस रिपोर्ट पर पुलिस व मैजिस्ट्रेट विचार के बाद ही आगे की कार्रवाई करेगी।

– जब तक रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होगी।

– अगर मामले में समझौता हुआ तो जिला जज द्वारा नियुक्त मैजिस्ट्रेट मामले का निपटारा कराएंगे और फिर मामले को हाई कोर्ट भेजा जाएगा ताकि समझौते के आधार पर केस बंद हो।

CJI दीपक मिश्रा के तीन जजों वाली बेंच का फैसला

13 अक्टूबर 2017 को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि इस मामले में दो जजों की बेंच ने 27 जुलाई को जो आदेश पारित कर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक संबंधी गाइडलाइंस बनाई है उससे वह सहमत नहीं हैं। बेंच ने कहा था कि हम कानून नहीं बना सकते हैं बल्कि उसकी व्याख्या कर सकते हैं। अदालत ने कहा था कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है। अदालत ने मामले में एडवोकेट वी. शेखर को कोर्ट सलाहकार बनाया था।