नजीब की तलाश में मां खा रही दर-दर ठोकरे, क्यों आंखे मूंद बैठी है पुलिस

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बदायूं के वैद्यों का टोला में छह लोगों का ये परिवार 2 साल पहले तक ठीक-ठाक रह रहा था। तीन बेटों में से एक को बॉयोटेक्नोलॉजी, जेएनयू में एडमिशन मिल गया था, दूसरा एमटेक कर रहा था और सबसे छोटा वाला बीटेक कर रहा था। घर के मुखिया नफीस अहमद अपना फर्नीचर का कारोबार कर रहे थे। तीन भाइयों की एक बहन भी 11वीं में पढ़ रही थी। लेकिन 15 अक्टूबर 2016 के बाद से ये परिवार बिखर गया।

जेएनयू का छात्र नजीब गायब हो गया। दूसरे लड़के मुजीब की पीएचडी करने की हसरतें पूरी न हो सकीं सबसे छोटे वाले बेटे हसीब की पढ़ाई भी जैसे-तैसे पूरी हो पाई। गायब बेटे के गम में पिता दिल के मरीज हो गए और चारपाई पकड़ ली। अब बात रहीं नजीब की मां नफीस फातिमा की तो उन्हें हम और आप लोग टीवी पर कभी दिल्ली पुलिस की लाठी खाते हुए देखते हैं तो कभी सड़क पर पुलिस द्वारा घसीटे जाने की तस्वीरें सामने आती हैं। जिस पर वो हाथ जोड़ते हुए गुहार लगाती हैं कि कोई उन्हें उनका बेटा लौटा दे तो फिर कभी वो दिल्ली नहीं आएंगी और न ही बेटे नजीब को आने देंगी।

नजीब के रिश्ते की बहन शदाफ बताती हैं कि, ‘‘ नजीब डॉक्टर तो मुजीब प्रोफेसर बनना चाहता था. बहन भी स्कूल जाती थी। जब नजीब जेएनयू से घर आता था तो परिवार चहक जाता था। लेकिन 15 अक्टूबर 2016 के बाद से नजीब क्या गया मानों इस घर की खुशियां ही चली गईं। नजीब को तलाशने में मां फातिमा नफीस शहर-शहर गलियों की खाक छान रही हैं।’’

नफीस अहमद (पिता) – नजीब को तलाशने में परिवार की संपत्ति बिकना शुरु हो गई है। घर में रखी जमा पूंजी खत्म हुई तो घर में रखा सोने-चांदी का सामान बिक गया। बेटे की याद में पिता दिल के मरीज हो गए। छत से गिरने के चलते कई जगह से शरीर की हड्डिया टूट गईं। काम-धंधा बंद हो गया। नजीब की याद में पूरा दिन पलंग पर बीतता है। कान डोर बेल पर लगे रहते हैं कि पता नहीं कब नजीब की कोई खबर आ जाए। दवा का भी कोई भरोसा नहीं रहता है।

मुजीब अहमद (भाई) – जब नजीब गायब हुआ था तो मुजीब एमटेक कर रहा था। अब एमटेक की पढ़ाई पूरी हो चुकी है। मुजीब पीएचडी कर प्रोफेसर बनना चाहता था। लेकिन घर के हालात इसकी इजाजत नहीं दे रहे थे। पीएचडी करने की उसकी ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी। अब घर के चार लोगों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई है। इसलिए मुजीब ने पीएचडी का ख्वाब छोड़कर नौकरी करनी शुरु कर दी है।

हसीब अहमद (भाई) – नजीब का सबसे छोटा भाई हसीब बीटेक की पढ़ाई पूरी कर चुका है. लेकिन बीमार मां यहां-वहां दौड़ भाग करती हैं। कोर्ट सीबीआई और दिल्ली पुलिस के चक्कर लगाती हैं। रास्ते में उन्हें कोई परेशानी न हो जाए इसके लिए हसीब हर वक्त मां के साथ रहते हैं। घर में बीमार पिता भी हैं। उन्हें भी डॉक्टर के यहां लेकर जाना होता है।

फातिमा नफीस (मां) – बूढ़ी मां फातिमा नफीस का एक पैर बदायूं में तो दूसरा 275 किमी दूर दिल्ली में रहता है। अगर किसी शहर से खबर आ जाए कि यहां नजीब हो सकता है तो फिर दो-चार दिन उसी शहर में गुजर जाते हैं। फातिमा ने कोई दरगाह, मस्जिद, रेलवे स्टेशन और किसी शहर की ऐसी गली नहीं छोड़ी जहां नजीब के मिलने की आस हो। अब दिल्ली हाईकोर्ट के चक्कर लगा रहीं हैं।

नजीब की बहन – घर में सबसे छोटी नजीब की बहन है। जब उसका भाई गायब हुआ था तो वह 11वीं की तैयारी कर रही थी। लेकिन अचानक से घर में आए भूचाल की वजह से उसकी पढ़ाई बाधित हो गई। जैसे-तैसे 11वीं तो हो गई लेकिन 12वीं की परीक्षा का फार्म नहीं भर पाई। कुछ घर का गमज़दा माहौल तो कुछ माली हालात ने उसे आगे की पढ़ाई नहीं करने दी। अब जैसे-तैसे वो इस साल 12वीं की परीक्षा देने जा रही है।