हिन्दू संस्कृति की महानता के प्रतीक ‘शारदा पीठ’ का रहस्य…

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हिन्दू संस्कृति की महानता के प्रतीक
‘शारदा पीठ’ का रहस्य…

 

 

हिन्दू संस्कृति की महानता के प्रतीक ‘शारदा पीठ’ का रहस्य.के बारे में
नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुरवासिनी,

त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे।
अर्थात कश्मीर में निवास करने वाली हे शारदा देवी। हम तुम्हें नमन करते हैं। आपकी हम निरंतर प्रार्थना करते हैं कि आप हमें विद्या का दान दें।
इस श्लोक के अर्थ से आज के परिपेक्ष्य की तुलना करें तो मां शारदा की पूजा-अर्चना तो अनंतकाल तक होती ही रहेगी, लेकिन हर भारतीय के लिए ये अत्यंत पीड़ा का विषय है कि उनका निवास अब कश्मीर में नहीं है। वैसे तो मां शारदा और उनके आशीर्वाद रुपी ज्ञान की किरणें चहुंदिशाओं में विद्यमान है, परन्तु ज्ञान का भंडार और हिन्दू सभ्यता का मस्तक कहे जाने वाला शारदा पीठ अब जर्जर अवस्था में है।

अब वहां विद्वानों और विद्यार्थियों की पाठशाला का स्थान ईटों -पत्थरों के खंडहर ने ले लिया है। जिस कश्मीर को हिन्दू सभ्यता का किला माना जाता था, आज वहां हिन्दू सभ्यता के परिचायक रहे शारदा पीठ की काया ही पलट गयी है। 5,800 साल पहले जहां देश-विदेश से आए विद्याथियों को तंत्रविद्या, शैववाद, योग जैसे विषयों का ज्ञान का पान कराया जाता है,
अब वो स्वयं अतीत का पन्ना बन कर रह गया है।

राजा ललितादित्य

राजा ललितादित्य (राज्यकाल 724-761 ई) का हिन्दू राज्य ईरान से लेकर ब्रह्मदेश तक और दक्षिण में कावेरी तक फैला हुआ था, कश्मीर13वीं सदी तक हिन्दू सभ्यता का गढ़ माना जाता था। कहा जाता है कि सागर-मंथन से उत्पन्न अमृतपान के बाद, बचा हुआ अमृत ब्रह्माजी ने कृष्णगंगा नदी , (आज पाकिस्तान व्याप्त कश्मीर के नीलम वैली में है) में असुरों से छिपाकर रखा।
यहां पर बह्मा ने देवी शारदा की स्थापना की।
आगे चलकर यह एक ज्ञान का महापीठ बना।
इसका रुपांतरण एक विश्व विद्यालय में हुआ ।
यह विद्यालय अध्यात्मिकता के चरमोत्कर्ण का साक्षी बना।
शारदा पीठ से ज्ञान प्राप्त करने कर,
इस विद्यालय से मिलने वाली अलग-अलग उपाधियां प्राप्त करने के लिए पूरे विश्व से लोग यहां आते थे।

सनातन धर्म शास्त्र

सनातन धर्म शास्त्र के अनुसार भगवान शिव ने सती के शव के साथ जो तांडव किया था उसमें सती का दाहिना हाथ इसी पर्वतराज हिमालय की तराई कश्मीर (शारदा गांव) में गिरा था। कश्मीरी पंडितों के लिए शारदा पीठ की बड़ी महत्ता है, लेकिन अफसोस अब कश्मीर में ना महत्व बचा है, ना महत्व देने वाले। कश्मीर विद्वानों की भूमि है, वाग्भट की अष्टांग योगा, अष्टांग ह्दय, चरक सहिंता , पतंजलि योग , अभिनव गुप्त की तंत्रलोक, शिवपुराण, विष्णु शर्मा का पंचतंत्र , कथासरितसागर , शाड्र्गदेव की संगीत रत्नाकर इन सबका जन्म कश्यप ऋषि की पवित्र भूमि कश्मीर में हुआ है।
यहां अनेकों विद्वानों में जन्म लिया है- शैव दार्शनिकों के कैयाताचार्य, सोमनानंद, मुक्तकांता, स्वामीन, शिव स्वामीन, आनंदवर्धन, प्रद्युम्न भच्च, उत्पलाचार्या, रमाकांत, प्रज्ञानार्जल, लक्ष्मण गुप्त तथा महादेव भट, जिन्होंने शैनिजम का प्रचार किया

 

और हजारों विदेशी आक्रमणों के बाद भी शैविजम का संवर्धन किया।
पूरे संस्कृत साहित्य में से अगर कश्मीर का साहित्य अलग किया जाए तो बचा हुआ
संस्कृत साहित्य चन्द शब्दों में सिमट कर रह जाएगा।
इसी संस्कृत भाषा और हिन्दू सभ्यता का ह्दय ही था
शारदा पीठ, जो अब खंडहर ही सही,
परन्तु अपनी गौरवमयी सभ्यता के प्रतीक के रुप में गर्व के साथ खड़ा हुआ है।