देश का वो रहस्यमय किला जिसके इतिहास को मुगलों ने कई बार बदलने की कोशिश की!

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देश का वो रहस्यमय किला
जिसके इतिहास को मुगलों ने कई बार बदलने की कोशिश की

देश का वो रहस्यमय किला-क्या आप जानते हैं? महाराष्ट्र के औरंगाबाद में आज आप जिस किले को दौलताबाद किले के नाम से जानते हैं, उसका असल नाम देवगिरी दुर्ग है। इसका निर्माण कैलाशगुफा बनाने वाले राष्ट्रकुट शासक ने करवाया था, लेकिन मुगलों ने इतिहास को तोड़ मरोड़कर इसे दौलताबाद किले में तब्दील कर दिया।

दुश्मनों को ऐसे मात देते थे किले के शासक

190 मीटर ऊंचाई पर प्राचीन देवगिरी नगरी इसी परकोटे के भीतर बसी हुई थी। इस किले की सबसे प्रमुख ध्यान देने वाली बात ये है कि इसमें बहुत से भूमिगत गलियारे और कई सारी खाईयां हैं। ये सभी चट्टानों को काटकर बनाए गए हैं। इस दुर्ग में एक Cave Road भी है,
जिसे ‘अंधेरी’ कहते हैं।
इस मार्ग में कहीं-कहीं गहरे गड्ढे भी हैं,
जो दुश्मनों को मारने के लिए बनवाई गई थी।

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कालिंजर दुर्ग,

भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित एक दुर्ग है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में विंध्य पर्वत पर स्थित यह दुर्ग विश्व धरोहर स्थल खजुराहो से ९७.७ (97.7) कि॰मी॰ दूर है। इसे भारत के सबसे विशाल और अपराजेय दुर्गों में गिना जाता रहा है। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं। इनमें कई मन्दिर तीसरी से पाँचवीं सदी गुप्तकाल के हैं। यहाँ के शिव मन्दिर के बारे में मान्यता है कि सागर-मन्थन से निकले कालकूट विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यहीं तपस्या कर उसकी ज्वाला शान्त की थी। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला कार्तिक मेला यहाँ का प्रसिद्ध सांस्कृतिक उत्सव है।

प्राचीन काल में यह दुर्ग जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। बाद में यह १०(10)वीं शताब्दी तक चन्देल राजपूतों के अधीन और फिर रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू आदि ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। कालिंजर विजय अभियान में ही तोप का गोला लगने से शेरशाह की मृत्यु हो गई थी। मुगल शासनकाल में बादशाह अकबर ने इस पर अधिकार किया।

 

इसके बाद जब छत्रसाल बुन्देला ने मुगलों से बुन्देलखण्ड को आज़ाद कराया
तब से यह किला बुन्देलों के अधीन आ गया व छत्रसाल बुन्देला ने अधिकार कर लिया।
बाद में यह अंग्रेज़ों के नियंत्रण में आ गया।
भारत के स्वतंत्रता के पश्चात इसकी पहचान एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में की गयी है।
वर्तमान में यह दुर्ग भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकार एवं अनुरक्षण में है।
यह बहुत ही बेहतरीन तरीके से निर्मित किला है।
हालाँकि इसने सिर्फ अपने आस-पास के इलाकों में ही अच्छी छाप छोड़ी है।