नारी -पूजा का पर्व है धनतेरस

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                        लेखिका – श्रीमति रचना वाजपेयी
(अध्यक्षा, उत्कृष्ट उत्थान सेवा मंडल एवं समाजसेवी)

                      धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं

धनतेरस सुख- समृद्धि , धन-धान्य और वैभव का त्यौहार है। इस दिन आरोग्य के देवता धनवंतरी, मृत्यु के अधिपति यम, वास्तविक धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी तथा वैभव के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है।
श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है।

‘धनमग्नि, धनम वायु, धनम सूर्यो धनम वसु:’अर्थात् प्रकृति ही लक्ष्मी है और प्रकृति की रक्षा करके मनुष्य स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु नि:स्वार्थ होकर पूरे समाज के लिए लक्ष्मी का सृजन कर सकता है। इसलिए हमें इस दिन पर्यावरण संरक्षण का प्रण लेना चाहिए। अपने आसपास पेड़-पौधे लगाने चाहिए और समाज को भी प्रकृति की रक्षा करने के लिए जागरुक करना चाहिए।

धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी की आराधना का दिन है, और हमारे भारतवर्ष में नारी को लक्ष्मी का रुप माना जाता है। मनुस्मृति में भी वर्णित है -यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात् जिस कुल में नारियों की पूजा – सत्कार होता है उस कुल में दिव्य गुण – दिव्य भोग और उत्तम सन्तान होते हैं।

यदि हमें स्वयं की और सर्वप्रथम अपने राष्ट्र की सन्तुलित उन्नति करनी है तो नारी शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है, नारी को समाज को उचित स्थान पाने की जरुरत है। आज के दौर में पुरुष और स्त्री को कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा और इस शुभारम्भ के लिए धनतेरस का त्यौहार एक शुभ अवसर है।

धनतेरस को लेकर एक प्रसंग और प्रचलित है, इसी दिन आचार्य धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसका कारण है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष ही सबसे बड़ा धन है, जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है और वही सबसे धनवान है।

धनतेरस की पावन वेला में वास्तविक धन को पहचानें, स्वस्थ रहें, स्वच्छ रहें, समृद्ध रहें एवं अपने देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहें।