प्रेम का उत्सव है दीपावली

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लेखिका – श्रीमति रचना वाजपेयी
(श्रीमति रचना वाजपेयी उत्कृष्ट उत्थान सेवा मंडल की अध्यक्षा हैं, जानी-मानी समाजसेवी और हेल्थ कन्सल्टेंट भी है।)

   दीपावाली की हार्दिक शुभकामनाएं

दीपावली खुशी, उमंग, आपसी मेलजोल और प्रकाश का पर्व है। ये भारत के सबसे बड़े और प्रभावशाली त्यौहारों में से एक है। सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक, दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से प्रकाश की ओर जाइए’।

दीपावली के दिन ही श्रीराम रावण का वध कर अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात वापस अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय श्रीराम के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीपों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक हम भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।

दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का त्यौहार है। सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है और साथ ही दीपावली का पर्व नारी शक्ति का संदेश भी देता है। सम्पूर्ण रामायण से ज्ञात होता है कि रावण के पतन का कारण एक स्त्री का अपमान ही था। रावण एक प्रकांड विद्वान था, वेद-शास्त्रों पर उसकी अच्छी पकड़ थी लेकिन मां सीता के रुप में एक स्त्री का निरादर करना उसके सभी गुणों पर भारी पड़ गया। सोने की लंका और सम्पूर्ण राज्य से लेकर पूरे परिवार को गंवा बैठा, उसका सर्वस्व नष्ट हो गया।

आज हर किसी को ये समझने की आवश्यकता है कि स्त्री देवी का रुप है और समाज में नारी को वही स्थान मिलना चाहिए जो कि ईश-भक्ति में मां दुर्गा , मां लक्ष्मी , मां सरस्वती का है।

स्त्री परिवार की पालनकर्ता है, समाज की उद्धारक है, राष्ट्र की नव-निर्माता है, सृष्टि की जननी है, स्त्री वन्दनीय है और हम सब के लिए एक दिव्य प्रेरक शक्ति है।

दीपावली पर धन धान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी,विघ्न-विनाशक गणेश , विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। हम इस दिन अपने घरों की, कार्यालयों की, कॉलोनी की साफ- सफाई करते हैं।

21वीं सदी के वर्ष 2018 में आवश्यकता स्वयं को बदलने की भी है । दीपावली के आसपास यानी अक्टूबर-नवम्बर के महीने में पर्यावरण प्रदूषण चरम पर होता है। इसकी वजह मात्र 1 नहीं वरन् कई हैं, इसलिए हमें आतिशबाजी कम से कम और ऐसे तरीके से करनी चाहिए कि पर्यावरण दूषित न हो।

इसके अलावा हमें, हमारे समाज को पीछे ढकेल रही कुरीतियों को मिटाकर आगे बढ़ना होगा। अपनी बेटियों को बेटों के समान समझना होगा। राष्ट्र की उन्नति के लिए बेटियों को पढ़ाना होगा, आगे बढ़ाना होगा और उन्हें बुलन्दियों को छूने के लिए एक नया आसमान देना होगा।