नियमित करें यह अभ्यास, मन रहेगा हमेशा ताजा, ऊर्जावान

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मन और ध्यान

मन और ध्यान-आप कैसे सुनते हैं? आवाजें कानों पर पड़ती हैं – लेकिन अगर मन कहीं और है, तो क्या आप सुन सकते हैं? आप में संकाय के माध्यम से आप सुन रहे हैं – जिसे मन कहा जाता है। इसी तरह, आप मन के माध्यम से अन्य सभी इंद्रियों का अनुभव करते हैं।

मन पांच इंद्रियों (दृष्टि, गंध, ध्वनि, स्वाद , स्पर्श) की दुनिया की ओर सरपट दौड़ता है। आप शांत बैठ सकते हैं – बंद या खुली आंखों के साथ। यदि आपकी आँखें सब जगह जा रही हैं, तो मन ध्यान की स्थिति में नहीं है। जब इंद्रियों से हटता है, केवल ध्यान के लिए तैयार होता है।

 

ध्यान एकमात्र तरीका है जिससे आप नकारात्मक विचारों को पार कर सकते हैं,
और फिर सकारात्मक विचार स्वतः और स्वतः ही आ जाएंगे।

ध्यान के नियमित अभ्यास से मन ताजा, ऊर्जावान , सहज बनता है।

ध्यान से यूं खुलती है मन की हर गली

मिस्टर सक्सेना रोज सुबह 15 मिनट एकांत में बैठते हैं। इस दौरान वह किसी से कोई बात नहीं करते। गुप्ताजी की आदत है बागीचे में कुछ समय बिताने की। उनकी हर शाम का कुछ वक्त हरियाली के बीच बीतता है। कपूर साहब ये दोनों काम नहीं कर पाते। इसकी कमी वह अपने डॉगी को टहलाकर पूरा करते हैं। उनका कहना है, डॉगी के साथ मैंने भी तो टहल लिया।

मिस्टर सक्सेना, गुप्ताजी या कपूर साहब। हर शख्स के लिए ध्यान यानी मेडिटेशन का अलग अर्थ है। शायद यही इस शब्द की सबसे बड़ी त्रासदी भी है। इतने व्यापक पैमाने पर मौजूदगी दर्ज कराने के बावजूद सबने मेडिटेशन का अपना एक मायने निकाल लिया है। क्या वाकई ये मेडिटेशन है?

ध्यान के रूप कई
पालथी मारकर बैठने या बागीचे में टहलना अच्छा और स्वास्थ्यकारी हो सकता है। लेकिन इसे मेडिटेशन का दर्जा नहीं दे सकते। असली ध्यान में धीरे-धीरे सारी गतिविधियां कम होती हैं और हम शांति के सहगामी बन जाते हैं। ध्यान के रूढ़िवादी प्रदर्शनों में भी तमाम दृष्टिकोण और दर्शन हैं।

यहूदी, ईसाई और इस्लामी सूफीवाद की अपनी चिंतनशील परंपराएं हैं। केवल भारत में ही चिंतनशीलता के कई आयाम हैं। उनमें से कुछ का श्वेताश्वतर उपनिषद जैसे आरंभिक ग्रंथों में भी विवरण है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है ओऊम मंत्र।

योगसूत्र के रचनाकार पतंजलि ने इसकी सलाह दी है। इसके बाद हैं बौद्ध और जैन धर्म। यहां अभ्यास के केंद्र में समांथा और विपश्यना हैं। समांथा मतलब ध्यान जो मन को स्थिर करता है और शांत रहने की स्थिति में लाता है। इसी तरह विपश्यना का अर्थ हुआ अंतर्दृष्टि।

मध्य युग से बदलाव

पहली सदी के अंत तक हिंदू तांत्रिक और महायान बौद्ध स्कूल (विशेष रूप से तिब्बती वज्रयान) मंत्र और मानसिक चित्रण की वकालत करते रहे। मध्य युग में इसमें बदलाव आया। नया दृष्टिकोण अधिक भावनात्मक था। जहां पूजा-अर्चना, जप और भजन-कीर्तन के जरिये ईश्वरीय प्रेम के प्रति समर्पण दर्शाया गया।

उदाहरण के लिए भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम और देवी का कोई दिव्य रूप। इनमें भी आगे जाकर कई अंतर हैं। मसलन आवाज का इस्तेमाल।
आखें खुली रहेंगी या बंद।
इनसे ध्यान का पूरा अनुभव बदल जाता है।

आम तौर पर वैज्ञानिक किसी घटना में तब रुचि लेते हैं,
जब वह आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से ध्यान देने लायक हो जाती है।
मेडिटेशन और योग ने इस स्थिति को पा लिया है।
पिछले करीब चार दशकों से शोधकर्ता इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
अब तक जो डेटा मिले हैं,
वे मेडिटेशन के साथ होने वाले शारीरिक बदलाव दर्शाते हैं।
इन्हें माइंड योग की शारीरिक छाप कह सकते हैं।

सांस लेने की दर, मेटाबॉलिक रेट और कई केमिकल-हार्मोनल बदलाव से ध्यान करने वाले शरीर की
सामान्य स्थिति को मापा जा सकता है।
ध्यान का दिमाग पर गहरा असर पड़ता है।
महत्वपूर्ण है
कि अब हम इसे भी मॉनिटर कर सकते हैं। इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) रीडिंग से दिमागी तरंगों की निगरानी हो सकती है।

दरअसल मस्तिष्क में लाखों तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं। हम चेतना के किस स्तर पर हैं,
क्या कर रहे हैं।
इससे इनका व्यवहार बदलता है।
अलग फ्रीक्वेंसी पर अलग इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी।
इन शारीरिक और मानसिक मापदंड के आधार पर दो अमेरिकी शोधकर्ताओं फ्रेड जे ट्रैविस और जोनाथन शियर ने
हाल में एक मॉडल दिया है।
यह मॉडल तीन तरह के मेडिटेशन की पहचान करता है।