देश की दोनों बड़ी राजनीति पार्टी के नेता असम में होंगे आमने सामने

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असम की 126 सीटों पर विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच चुनाव प्रचार का दौर तेज हो गया है। शनिवार को देश की दोनों बड़ी राजनीति पार्टी के नेता असम में होंगे । एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असम के छबुआ में रैली करेंगे। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी पार्टी का घोषणापत्र जारी करेंगे। असम के चुनाव में इस बार कांग्रेस समेत विपक्षी दल नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को चुनावी मुद्दा बनाने पर तुले हैं। दूसरी ओर बीजेपी का मानना है कि इस चुनाव में सीएए का कोई असर नहीं होगा।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी दो दिन के असम दौरे पर हैं। शुक्रवार को उन्होंने डिब्रूगढ़ में एक कॉलेज में छात्रों से बात करते हुए सीएए को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने कहा कि अगर असम में कांग्रेस की सरकार आती है तो किसी भी कीमत पर सीएए लागू नहीं होने देंगे। राहुल गांधी और पूरी असम कांग्रेस यूनिट सीएए को लेकर लगातार बीजेपी सरकार पर हमलावर हो रही है।इस दौरान राहुल गांधी असमी गमछा पहने हुए थे। इसकी खास बात यह थी कि इसमें सीएए लिखा हुआ और उस पर क्रॉस बना था। राहुल इससे पहले जब 14 फरवरी को असम आए थे तो भी वह उन्होंने ऐसा ही गमछा पहना हुआ। मतलब साफ है कि कांग्रेस इस बार सीएए के मुद्दे को जमकर उठाने वाली है।

असम में सीएए के विरोध से बने दो नए क्षेत्रीय दल भी इस बार चुनाव में उतर रहे हैं जिससे इस बार चुनाव में तीन तरफा मुकबला हो सकता है। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के समर्थन से असम जातीय परिषद (एजेपी) का गठन हुआ है और जेल में बंद जानेमाने आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई के संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने रायजोर दोल नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई है।

दूसरी ओर बीजेपी नेताओं का मानना है कि इस बार असम में सीएए का मुद्दा नहीं बनेगा। असम बीजेपी अध्यक्ष रंजीत कुमार दास से लेकर मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल भी दावा कर चुके हैं कि सीएए का मुद्दा नहीं होगा। असम सरकार में मंत्री और बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले हिमंत बिस्वा शर्मा ने भी सीएए को चुनावी मुद्दा मानने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि बीजेपी सीएए लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।

हिमंत का कहना है कि लोग अब आंदोलन झेलने की स्थिति में नहीं है। लोगों ने कोविड-19 महामारी के दौरान बहुत कुछ बर्दाश्त किया है। भले ही सीधे तौर पर बीजेपी नेता सीएए को मुद्दा मानने से इनकार कर रहे हों लेकिन कहीं न कहीं पार्टी को डर है कि यह मुद्दा बड़ा हो सकता है। सीएए के जवाब में बीजेपी असम में संस्कृति और विरासत की बात कर रही है। पिछले दिनों जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह गुवाहाटी के दौरे पर आए थे तो वह 15-16वीं सदी के संत श्रीमंत शंकरदेव के जन्मस्थल बोरदुवा गए थे।

उन्होंने घुसपैठियों को लेकर कांग्रेस पर तीखा हमला बोला था। गृहमंत्री अमित शाह ने असम में एक जनसभा से कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल के एआईयूडीएफ गठबंधन को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि यह गठबंधन असम में घुसपैठ को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ नहीं करेगा।

बता दें कि 2019 में असम में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ था। असम में विरोध प्रदर्शन करने वालों में स्टूडेंट्स, किसान, और आम नागरिक समेत कई संगठन शामिल थे। यह विरोध प्रदर्शन इतना तेज था कि लोग रात में मशालें लेकर निकलते थे। प्रदर्शन के दौरान कम से कम 5 लोगों की मौत हो गई थी।

राजनीतिक एक्सपर्ट बताते हैं कि बंगाल चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने सीएए के नियमों को लागू करने में देरी कर दी है। दरअसल असम में 2019 के अगस्त महीने में जारी की गई एनआरसी की फाइनल लिस्ट में जिन 19 लाख लोगों के नाम काट दिया गया था उनमें तकरीबन 12 लाख बंगाली हिंदू वोटर थे। तब ममता बनर्जी ने ममता बनर्जी ने बंगाली हिंदुओं के इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया था। हाल ही में गृह मंत्रालय ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि सीएए के संबंध में नियमों को लागू करने के लिए 9 अप्रैल, 2021 और 9 जुलाई, 2021 तक का समय दिया गया है।